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अबला-१. तूफ़ान के दिन / मनोज श्रीवास्तव
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'''अबला
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१. तूफान के दिन'''
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|रचनाकार=मनोज श्रीवास्तव
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उसके उनींदे अलसाए अकेलेपन में
मर्द-हथियारों के अन्यत्र होने पर
पछतावे की लकीरें नहीं थीं
बल्कि, ज़ल्दी ही वापस लौटने की बेताबी थी
</poem>
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