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दादी अम्मा / विजय वाते

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|रचनाकार=विजय वाते
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भोले भोले सवाल करती है
दादी अम्मा कमाल करती है

शाम होते ही घर चले आना
हुक्म वो बेमिसाल करती है

भूरे कुत्ते का श्यामा गैया का
हम सभी का ख्याल करती है

आज मावस है कल शनीचर है
काम करना मुहाल करती है

सर से इक पल अगर गिरे आँचल
अम्मा दिन भर बवाल करती है

हम जो मुन्ने को डाट देते हैं
आँख रो रो के लाल करती है

कापते हाँथ पोपले मुह से
जिन्दगी बहाल करती है

देह अपनी नहीं संभलती है
सारे जग का संभाल करती है
</poem>