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चौपाल

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::रमा जी, कविता कोश में योगदान देने की इच्छा रखना सबसे महत्वपूर्ण है -और इसके बाद महत्वपूर्ण है वास्तव में योगदान देना। योगदान गलत हुआ या सही -इसका इतना महत्व नहीं हैं। कविता कोश तो सारे विश्व का है और सभी लोगो के सहयोग से बना है। लोग एक दूसरे के द्वारा की गयी गलतियाँ सुधार कर कोश को दिन-प्रतिदिन बेहतर बनाते हैं। यह भी सही है कि हर व्यक्ति की जानकारी अपने अपने क्षेत्र में अपेक्षाकृत अधिक होती है। आपकी कमप्यूटर से संबंधित जानकारी भले ही कम हो -परन्तु आप हिन्दी और साहित्य के विषय में ज्ञान रखती हैं। आपको रामचरितमानस पर काम करना, मेरे विचार में, नहीं छोड़ना चाहिये। हेमेन्द्र जी और मेरा आशय केवल इतना था कि पुस्तक के अनुसार ही कार्य होना चाहिये -ताकि समता बनी रहे। किस पुस्तक को मानक मान कर रामचरितमानस को संपादित किया जाए ऐसा अब तक किसी ने नहीं सोचा था। अब गीता प्रेस की पुस्तक को मानक मान लिया गया है और आप उसी पुस्तक के अनुसार संपादन कर रही हैं तो कोई समस्या ही नहीं। जैसा पुस्तक में लिखा गया है बिल्कुल वैसा ही हम कोश में लिखेंगे। यदि आपसे या किसी भी और व्यक्ति से कोई गलती होती है तो उस बदलाव को उलटा भी जा सकता है। इसलिये आप गीता प्रेस की पुस्तक के अनुसार कार्य जारी रख सकती हैं। ऐसा करते हुए यदि कोई संदेह या प्रश्न सामने आ खडा हो तो चौपाल पर प्रस्तुत कीजिये और आपको समाधान मिल जाएगा। सभी के योगदान की तरह आपका योगदान भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। सादर '''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] ०५:१८, २५ मई २००७ (UTC)'''
 
==क्षमा करें!==
सबसे पहले मैं आदरणीय रमा जी से क्षमा माँगता हूँ। उन्होने शायद मेरे लेखे को अन्य अर्थ में ले लिया है। मैं समझता हूँ कि कविता कोश में सहयोग करने वाले सभी सदस्य मेरे लिए सम्माननीय, विद्वान और बुद्धीजीवी हैं। यह आम प्रवृत्ति है कि हम शब्दों को उनके मानक रूप में देखते हैं, जबकि कवि प्रायः अपनी रचनाओं में किन्ही विशेष कारणों से शब्दों के स्थानीय रूपों का प्रयोग करते रहे हैं। हमने यदि रचना के मूल पाठ या मूल पाठ के प्रकाशन को नहीं देखा है तो वे शब्द हमे उस स्थान पर गलत लग सकते हैं, जबकि ऐसा होता नहीं है।<br>
मेरा यहाँ लिखने का केवल और केवल यही उद्देश्य था कि सभी सदस्य अपने ज्ञान के आधार पर सम्पादन करने की प्रवृत्ति से बचते हुए रचना के मूल पाठ के आधार पर सम्पादन करने की प्रवृत्ति विकसित करें, जिससे कि रचना और रचनाकार के साथ किसी प्रकार का अन्याय न होने पाये।<br>
गलतियाँ सभी से होती हैं, मुझसे भी हुई होंगी या हो सकती हैं। हमे एक दूसरे की गलतियों पर ध्यान आकृष्ट कराना ही चाहिये तथा इसे एक स्वस्थ परंपरा के रूप में लेना चाहिये।<br>
 
मैं पुनः रमा जी से क्षमा माँगते हुए आशा करता हूँ कि वे कविता कोश में अपना अमूल्य सहयोग यथावत् जारी रखेंगी।<br>
 
-- हेमेन्द्र कुमार राय, 25 मई 2007
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