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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
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<poem>
दिल का क्या है वो तो चाहेगा मुसलसल मिलना
वो सितमगर भी मगर सोचे किसी पल मिलना

वाँ नहीं वक़्त तो हम भी हैं अदीमुल्फुर्सत
उससे क्या मिलिए जो हर रोज कहे कल मिलना

इश्क़ की राह के मुसाफ़िर का मुक़द्दर मालूम
शहर की सोच में हो और उसे जंगल मिलना

उसका मिलना है अजब तरह का मिलना जैसे
दश्त ए उम्मीद में अंदेशे का बदल मिलना

दमन ए शाम को अगर चाक भी कर लें तो कहीं
नूर में डूबा हुआ सुबह का आँचल मिलना
</poem>
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