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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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युग के युवा,

मत देख दाएँ,

और बाएँ, और पीछे,

झाँक मत बग़लें,

न अपनी आँख कर नीचे;

अगर कुछ देखना है,

देख अपने वे

वृषम कंधे

जिन्‍हें देता निमंत्रण

सामने तेरे पड़ा

युग का जुआ,

युग के युवा!तुझको अगर कुछ देखना है,

देख दुर्गम और गहरी

घाटियाँ

जिनमें करड़ों संकटकों के

बीच में फँसता, निकलता

यह शकट

बढ़ता हुआ

पहुँचा यहाँ है।


दोपहर की धूप में

कुछ चमचमाता-सा

दिखाई दे रहा है

घाटियों में।

यह नहीं जल,

यह नहीं हिम-खंड शीतल,

यह नहीं है संगमरमर,

यह न चाँदी, यह न सोना,

यह न कोई बेशक़ीमत धातु निर्मल।


देख इनक‍ी ओर,

माथे को झुका,

यह कीर्ति उज्‍ज्‍वल

पूज्‍य तेरे पूर्वजों की

अस्थियाँ हैं।
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