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08:03, 14 जून 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजेन्द्र स्वर्णकार
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<poem>
तेरे दम से है रौनक़ घर मेरा आबाद है अम्मा !
दुआओं से मुअत्तर है ये गुलशन शाद है अम्मा !
तेरे क़दमों तले जन्नत, दफ़ीने बरकतों के हैं
ख़ुदा अव्वल, तुम्हारा नाम उसके बाद है अम्मा !
किसी भी हाल में रब अनसुना करता नहीं उसको
किया करती जो बच्चों के लिए फ़रियाद है अम्मा !
न दस बेटों से मिलकर एक मां पाली कभी जाती
अकेली जूझ लेती है , तुझे लखदाद है अम्मा !
तेरी आंखों से गर आंसू बहे तो फिर क़यामत है
तेरा हर अश्क सूरज है, सितारा - चांद है अम्मा !
हमें खुशियां तू दे पल-पल, ज़माने भर के ग़म सह कर
अभागे हैं, मसर्रत में जिन्हें ना याद है अम्मा !
कमी राजेन्द्र क्या मुझको , भरे गौहर मेरे घर में
दुआ तेरी मेरे दामन में लाता'दाद है अम्मा !
</poem>
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