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19:08, 14 जून 2010 {{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= ग़ज़ल / विजय वाते
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<poem>
शब्दों का बाज़ार सजाना सीख लिया
हमने जयजयकार लगाना सीख लिया
घर आँगन के जलने की परवाह किसे
हमने तो हुंकार लगाना सीख लिया
बस इक कोण से चीजें जानी परखी पर
अपने को अवतार कहाना सीख लिया
खूब भुनाई भूख गरीबी लाचारी
पीड़ा को हथियार बनाना सीख लिया
कौन किसी का दुःख बाटे जब लोगों ने
रिश्तों को औज़ार बनाना सीख लिया
मिल जुल कर रहने की केवल बातें की
आँगन में दीवार उठाना सीख लिया
</poem>