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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=इन्कार / परवीन शाकिर
}}
{{KKCatNazm}}<poem>फूलों और किताबों से आरास्ता <ref>सुसज्जित</ref> घर है 
तन की हर आसाइश देने वाला साथी
 आंखों आँखों को ठंडक पहुंचाने पहुँचाने वाला बच्चा 
लेकिन उस आसाइश, उस ठंडक के रंगमहल में
 जहां जहाँ कहीं जाती हूंहूँ
बुनियादों में बेहद गहरे चुनी हुई
 एक आवाज़ बराबर गिरय: गिरयः<ref>विलाप</ref> करती है 
मुझे निकालो !
 
मुझे निकालो !
{{KKMeaning}}आरास्ता=सुसज्जित, गिरय:=विलाप</poem>
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