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{{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते;ग़ज़ल / विजय वाते
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<poem>
दिल में एक तीस जो उभरे तो गजल होती है
जख्म जो हो जाएँ गहरे तो गजल होती है

आती जाती तो हैं ये रेल सभी जगहों से
जब तेरे गांव से गुजरे तो गजल होती है

उडाती रहती हीं घटाएं तो बहुत सी छत पर
मेघ जो आँख में ठहरे तो गजल होती है

होता रहता है बहुत यूँ तो दुनियादारी में
दिल पे कुछ खास ही गुजरे तो गजल होती है

आपकी दुनिया का हम हाल बयान कैसे करें
जब गजल आप सी निखरे तो गजल होती है
</poem>