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21:56, 17 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते;ग़ज़ल / विजय वाते
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
इस गजल के साथ चलाती साथ गाती सी लगे
कौन है जो शब्द में जादू जगाती सी लगे
एक स्वर जो गुनगुनाकर कान में कुछ कह गया
हाँ वही आवाज फिर फिर आप आती सी लगे
अर्थ पर अहसास पर आवाज पर हैं बंदिशें
सब तरफ प्रतिबन्ध लेकिन हुक आती सी लगे
शेर जिसका स्तब्धता को और तीखा कर गया
उस गजल की आँच मुझको दूर जाती सी लगे
</poem>