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अटका है पांखी / विजय वाते

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<poem>
हरे कच्चे इस वन में खोया है पांखी
अनायास ही सोये मन में झांका है पांखी

नीले नीले प्रेमगीत के मुखड़े जैसा है
नभ का टुकड़ा है ये सुख की वर्षा है पांखी

जाने कौन दिशा से आया जाएगा किस ओर
मंद पवन की फुगड़ी है ये गरबा है पांखी

घर सारे वर्षा मे भीगे, देह धर्म भीगे
अपने पंखों के कौतुक में डूबा है पांखी

धूप में भीगा मन शब्दों के अर्थ - अनर्थ करे
भरे गले की देहरी में यूँ अटका है पांखी
</poem>