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13:15, 19 जून 2010 {{kkglobal}}
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।रचनाकार=रमेश कौशिक
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वे आ रहे हैं<br />श्याम वर्ण अश्र्वों पर सवार<br />मेरे घर की ओर ।<br /><br />उनके काम बता दिए गये-<br />एक का काम है मुझको नहीं बोलने देने का<br />वाणी को छीन लें ।<br />दूसरे का काम है<br />न सुनने देने का ।<br />तीसरे का काम है<br />आंख बन्द करने का-<br />ताकि मैं उनका आतंक न देख सकूं ।<br />चौथे का काम है<br />मेरे दांत तोड़ने का<br />ताकि मैं चलते समय<br />किसी पर आक्रमण न करूँ ।<br />कुछ देर रुक कर<br />फिर एक गहन सन्नाटा<br />
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