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16:30, 19 जून 2010 {{kkglobal}}<br />{{kkrachna<br />।रचनाकार=रमेश कौशिक<br />}}<br /><poem>देह का भूगोल<br /><br />नहीं नहीं<br />कहीं नहीं<br />गया है <br />तुम्हारा<br />कदली-वन<br />किंचित भी<br />नहीं हटी हैं<br //>दूधिया पहाड़ियाँ<br /> और उनके बीच की घाटी भी<br />वहीं है<br />कमल-कुंज ऊपर <br />श्याम घटा वैसी ही<br /> छाई है<br /><br />फिर क्यों<br />संशय-ग्रस्त अन्धे हाथ से<br />इन्हीं को<br />टटोलते हो बार-बार<br /><br />है यह देह का भूगोल <br />देश का नहीं<br />जो बदल जायेगा<br /></poem>