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एक नदी यह भी / मनोज श्रीवास्तव
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09:04, 21 जून 2010
कंकाल में बहने लगे हैं
सच, असंख्य '''धारवियाँ'''
गंगाजमुना
गंगा-जमुना
की कंकाली पिंजर में
आरम्भ से अंत तक प्रवाहमान हैं
जो कुछ यूं लगता है कि जैसे
हर पल कुछ इंच आगे या पीछे विस्थापित होना
और तालियाँ बजाकर खुद का स्वागत करना
यही हमारी नियति है
.
Dr. Manoj Srivastav
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