घटाएं बख्शीश देती हैं
रेट रेत और राख जी रहे लोग
घिघिया-रिरिया कर
बख्शीश लेते हैं
घटाएं चन्द्र -कटोरे से भिनासारे भिनसारे पौ फटते ही बूंदों की अशार्फियांअशर्फियां
उड़ेल देती हैं--
चिता-आसीन जनों पर
आँखों के रास्ते
झुराई-कठुआई हड्दियों में
नारामा नरम जान भर देती हैं
घटा-मांएं आशीष देती हैं
बूँद-केशों से
विषाद-अवसाद बुहार
कोयाली कोयली कुक, झींगुरी झन्-झन् से
आयु-मार्ग पर
थके-हारे मन पर
चपलता उबेट देती हैं,
कुहर कुहरे वाले हाथों से
युगों की आसक्ति समेट
शून्य हुए मन में भर देती हैं