::बधाई के लिये बहुत धन्यवाद लीना जी। प्रतिष्ठा ने कोश में जितना काम किया है उससे उनका सिसओप बनना तो तय था। आपकी तरह मुझे भी आशा है कि वे कविता कोश को इसी तरह आगे बढ़ाती रहेंगी। जहाँ तक शिशुगीत, बालगीत या बाल कविता की बात है -आपने मार्गदर्शन करके सहायता की है। यह सैक्शन अभी अपने निर्माण के प्रारंभिक चरण में ही है -सो इस तरह की त्रुटियाँ अभी सुधर जाये तो बेहतर है। मैं प्रो. अनिल जनविजय सहित बाकीलोगों से इस बाबत अपने विचार रखने का आग्रह करता हूँ। आप प्रो. जनविजय को तो जानती ही होंगी, लीना जी। '''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] १९:०७, २२ नवम्बर २००७ (UTC)'''
:::: धन्यवाद लीना जी । सब लोगो को मुझ से इतनी आशा है, कभी कभी सोच कर डर लगता है । मेरा प्रयास रहेगा कि सभी कि अपेक्षानुरुप कार्य करु । '''--[[सदस्य:Pratishtha | Pratishtha]] २२ नवम्बर २००७ (UTC)'''
:: अनिल जनविजय जी के नाम से अभी तक तो एक कवि के रूप में ही मेरा परिचय था, लेकिन अब आप से पता लगा कि वे प्रोफ़ेसर भी हैं । वे मास्को विश्वविद्यालय में पढ़ाते ज़रूर हैं लेकिन प्रोफ़ेसर तो वे नहीं हैं । वे एक सच्चे कवि और अच्छे इन्सान हैं, प्रोफ़ेसर में जो बड़प्पन, जो गुरूर छिपा है, वह उनमें कहाँ । वे कवियों की तरह सहज और सरल हैं । लगता है, ललित जी, आपने उन्हें प्रोफ़ेसर बना दिया है । वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि वे मेरे अध्यापक रह चुके हैं ।---लीना नियाज ::लीना जी, प्रोफ़ेसर होना ग़ुरूर नहीं वरन ज्ञान की निशानी है। खैर, मुझे नहीं पता था कि आधिकारिक रूप से अनिल जी प्रोफ़ेसर नहीं हैं -पर इससे क्या फ़र्क पड़ता है? जैसा कि मैनें कहा कि ये तो ज्ञान की निशानी है। '''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] १२:४४, २४ नवम्बर २००७ (UTC)'''