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{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश कौशिक
|संग्रह=हास्य नहीं, व्यंग्य / रमेश कौशिक
}}

<poem>'''अश्वत्थामा हत:'''<br /><br />अश्वत्थामा मारा गया-<br />नर या कुंजर<br />तुमने तो सत्य ही बोला था-<br />युधिष्ठिर<br /><br />किन्तु वे<br />तुम्हारे ही साथी थे धनुर्धर<br />जिन्होंने गुँजाया था शंख-स्वर<br />जब तुम्ने कहा था-<br />या कुंजर<br /><br />ठीक है<br />तुम सत्यव्रती बने रहे<br />और काम भी हो गया<br />युद्ध जीत गये<br />दुनिया में बड़ा नाम हो गया<br />किंतु उस क्षण<br />जो संप्रेक्षित हुआ था<br />तुम्हारे द्वारा<br />तुम्हे पता था-<br />वह असत्य था<br />गुरु द्रोण<br />पुत्र-वध सुन कर नहीं मरे<br />शिष्य का छदम सत्य देख<br />लज्जा से देह छोड़ गये।<br />
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