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कुछ नहीं / रमेश कौशिक
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06:09, 24 जून 2010
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'''कुछ नहीं'''
एक विश्वास था
जो मेरे पास था
जिन्दगी के आख़िरी वक्त में
उसको भी
तुमने तोड़ा।
चलो अच्छा हुआ
जो कहने के लिए
अब कुछ नहीं छोड़ा। </poem>
Kaushik mukesh
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