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हाइकु कविताएँ / जगदीश व्योम
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12:55, 25 जून 2010
रौंदे तो जाआगे ही
रोना धोना क्यों?
चूमकर सो गए
गाँव के गाँव।
पर्वत–सा ठहरो
मन की कहो।
झेलेगा कब तक
तम के दंश।
निगल गई
सदियों का सृजन
क्रोधित धरा।
निगल गई
सदियों का सृजन
क्रोधित धरा।
डा० जगदीश व्योम
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