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<poem>
अंजुरी-जल में प्रणय की
:::अर्चना के फूल डूबे ।
::ये अमलतासी अँधेरे,::और कचनारी उजेरे,
आयु के ऋतुरंग में सब
:::चाह के अनुकूल डूबे ।
::स्पर्श ने संवाद बोले,::रक्त में तूफ़ान घोले,
कामना के ज्वार-जल में
:::देह के मस्तूल डूबे ।
::भावना से बुद्धि मोहित-::हो गई प्रज्ञा तिरोहित,
चेतना के तरु-शिखर डूबे,
::सुसंयम-मूल डूबे ।
</poem>
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