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खून का आँसू / नईम

47 bytes added, 03:40, 29 जून 2010
|रचनाकार=नईम
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खून का आँसू -
हमारी आंख आँख में, ठहरा हुआ है। बाहरी हो तो करूं तीमारदारी,रिस रहे नासूर से तो अक्ल हारी।है ।
:बाहरी हो तो करूँ तीमारदारी,
:रिस रहे नासूर से तो अक्ल हारी ।
मरहमपट्टी से सरासर-
सच ये गहरा हुआ है। हो गई भाषा पहेली, उलटबासी,आज खांटे व्यंग्य की सूरत रूआंसी।है ।
:हो गई भाषा पहेली, उलटबाँसी,
:आज खांटे व्यंग्य की सूरत रूआँसी ।
पूछता है काल हमसे,
शब्द का व्यक्तित्व क्यों दुहरा हुआ है? अन्न का रिश्ता नहीं अब आचरण से,जिंदगी से कहीं ज्यादा, साबका पड़ता मरण से
:अन्न का रिश्ता नहीं अब आचरण से,
:ज़िंदगी से कहीं ज़्यादा, साबका पड़ता मरण से ।
विधाता जनगणों का -
अंधा हुआ, बहरा हुआ है।है ।</poem>
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