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07:11, 29 जून 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
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<poem>
इन भव्य आधुनिक अस्पतालों
के सदावसन्त जगमग कोनों गलियारों में
प्लास्टिक वनस्पतियां
वातानुकूलित हवा में लह-लह
और गेस्टापों से
चुस्त-कुशल कार्यकर्ता
इधर से उधर लपकते व्यस्त भाव
हरदम पोंछे जाते फर्श के कारण
सजीली स्वच्छता की
एक अजीब-सी दुर्गंध बसी रहती है माहौल में
और भय की
उन दिशा निर्देशक तख्तियों और आश्वस्तिपरक
पोस्टरों के कारण
और वे डॉक्टर
इतने वाकृनिपुण प्रचंड डिग्रीधारी
विनम्र
इतने मन्द-मन्द मुस्काते
गोया वे शोकेस के भीतर बैठे हों
उन्हीं के असर में,
काफी हद तक उसी प्रकार के हो जाते हैं
वे बावर्दी वार्डब्वॉय और सफाई कर्मचारी भी
हालांकि वे छिपा नहीं पाते मरीज को टटोलती
अपनी लालची निगाहें
डॉक्टरों की-सी सफलता से
न अपनी गरीबी
संगत का ही गुन होगा कि
गरीबों से उनकी चिढ़ भी वैसी ही है
जैसी डॉक्टरों की
शुक्र है रौकलैण्ड पर हल्की-सी ही पड़ती है
गरीबी की परछाई