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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप जिलवाने |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> पहाड़ खुश है…
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पहाड़ खुश हैं
पहाड़ होकर ही
अपनी बची हुई कौम के साथ ...

हालाँकि पहाड़ को आदमी से
शिकायतें बहुत हैं
फिर भी वे कभी जिक्र नहीं करते
हर सैलानी का स्वागत करते हैं मुस्कुराकर

अब तक का किस्सा तो यही है
कि पहाड़ ने आदमी के खिलाफ
न कोई मोर्चा खोला है
न कोई एफआईआर दर्ज करवाई है
और न कोई उल्टा-सुल्टा बयान दिया है।

लेकिन इतना तो तय है
एक दिन जब अपनी खामोशी तोड़ेगा पहाड़
आदमी पर टूटेगा ‘पहाड़’।
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