Changes

आभास / प्रदीप जिलवाने

1,494 bytes added, 08:15, 29 जून 2010
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप जिलवाने |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> तुम्हारे आने…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रदीप जिलवाने
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>

तुम्हारे आने से पहले हो जाता है
मुझे तुम्हारे आने का आभास

दहकती देह पर कोई ठण्डे जल के
छींटे मारे ज्यों, तड़कती हैं त्यों
मेरी आत्मा की हरेक बूँद
बढ़ जाता है वेग स्पन्दन का
और तीव्र हो जाती है स्वाँस।

समय-असमय की हिचकियाँ
खोल देती हैं बन्द द्वार स्मृतियों के
यकायक जैसे कोई विरहन
करने लगती हो सोलह श्रृंगार
सुगन्धित हो उठता है निवास

कभी बाँयी आँख का फड़कना
कभी कौवे की छत पर काँव-काँव
तमाम तरह के शुभ संकेतों से
जैसे प्रकृति कर रही हो इंगित
जैसे बँध रही हो फिर आस

तुम्हारे आने से पहले हो जाता है
मुझे तुम्हारे आने का आभास।
00
778
edits