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08:16, 29 जून 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रदीप जिलवाने
|संग्रह=
}}
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<poem>
कितने घर जले
कितनी बस्तियाँ उजड़ी
कितनी बहा लहू
लेकर तुम्हारा नाम।
सच कहो
बन भी गया मंदिर तुम्हारा
क्या उसमें तुम रह पाओगे राम ?
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