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08:26, 29 जून 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रदीप जिलवाने
|संग्रह=
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<poem>
विदा होते दुःख तुम फिर आना
कि तुम्हारे आने से
घर में एका रहा चार दिन
कि तुम्हारे आने से
बनी रही चहल-पहल थोड़ी
कि तुम्हारे आने से
अपनत्व का अहसास हुआ
कि तुम्हारे आने से
अंततः तो मिला सुख ही
विदा होते दुःख तुम फिर आना
कि बाकी है अभी यहाँ
दुःख बाँटने की परम्परा।
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