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08:27, 29 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रदीप जिलवाने
|संग्रह=
}}
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<poem>
शायद आपको विश्वास न हो
परन्तु वो खुद भी नहीं जानता
कि
उसके कितने हाथों में
कितने हथियार हैं ?
कि उसके कितने पैरों में
कितने जूतें हैं ?
कि उसके कितने मुँहों में
कितने जुबानें हैं ?
और
अपने कितने सरों की
अब तक वह चढ़ा चुका है बलि।
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