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08:29, 29 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रदीप जिलवाने
|संग्रह=
}}
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<poem>
उनका दुःख
कि
उन्हें दिखाई नहीं देता
उनका दुःख
कि
उन्हें ही क्यों देता दिखाई।
00
उनका दुःख
कि
वे चल नहीं पाते
उनका दुःख
कि
वे कहीं नहीं जाते।
00
उनका दुःख
कि
वे थक गये रोते-रोते
उनका दुःख
कि
न आया दुःखड़ा रोते।
00
उनका दुःख
कि
वे सुखी नहीं
उनका दुःख
कि
हम दुःखी नहीं।
00