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<poem>

बचपन से एक लड़की
बुनती है अपनी उम्र
और जीवन को
एक स्वेटर की तरह

उसकी चाहत
उसकी ख्वाहिश
और सभी उसकी अभिलाषाएं
जैसे फंदे, जैसे रंग, जैसे बुनावट
इस स्वेटर की
बुनती जाती है वह जिसको

लड़की बढ़ती जाती है
स्वेटर बनता जाता है
बोर्डर, सीना, बाजुएँ, गला

एक दिन स्वेटर बन जाता है
ऊन ख़त्म हो जाती है
और उसी दिन
वो स्वेटर बुनने वाली लड़की
पहन के उस पूरे स्वेटर को
मौत की गोद चली जाती है
<poem>
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