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<poem>दर्द के सागर में
मैं डूबता तिरता हूं
कोई नहीं थमता
मेरा हाथ ।

मैं नहीं चाहता
मेरी पीड़ा का
बखान
पहुंचे आप तक
या उन तक ।

लेकिन कोई चारा भी नहीं है
मेरे दर्द का
साक्षी है
मेरा शब्द-शब्द ।

'''अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा''' </poem>
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