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समय के समक्ष ढलान पर मैं / मनोज श्रीवास्तव
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07:37, 30 जून 2010
वह कब तक यहां जमा रहेगा
ताश खेलते हुए मवालियों पर
फ़ब्तियां
कसते
कसता
रहेगा,
जबकि मेरे साथ ढलता जाएगा
मेरा ख्याल
,
--
जो बाद मेरे
भी
बूढे लोगों के दिमाग में बना रहेगा--
जेब में हाथ डाले हुए बाबुओं के होठो पर
तिल-तिल कर दम तोड रही
---सिगरेट की तरह।
Dr. Manoj Srivastav
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