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08:58, 30 जून 2010 <poem>धरती को
इसी तरह रौंदी-कुचली
देखता हूं
जव देखता हूं आकाश को
इसी तरह अकड़े-ऎंठे
देखता हूं
अब मैं
किस-किस से कहता फिरूं
आपना दुख -
यह धरती : मेरी मां !
यह आकाश : मेरा पिता !
</poem>
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