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मुझे मालूम है / शहरयार

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|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
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'''मुझे मालूम है'''

अब तुझे भी भूलना होगा मुझे मालूम है
बाद इसके और क्या होगा मुझे मालूम है.

नींद आएगी, न ख्वाब आएँगे हिज्रांरात में
जागना, बस जागना होगा मुझे मालूम है.

इक मकां होगा, मकीं होगा न कोई मुन्तजिर
सिर्फ दरवाज़ा खुला होगा मुझे मालूम है.

आगे जाना, और भी कुछ आगे जाना है मगर
पीछे मुडकर देखना होगा मुझे मालूम है.

ज़िन्दगी के इस तमाशे में किसी इक मोड पर
कोई शामिल दूसरा होगा मुझे मालूम है.