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पान की कला / वीरेन डंगवाल

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<poem>

भीगे लाल कपड़े पे
तहाके रखे पत्‍ते
झिल्‍ली झीने-मोटे-मोटे-पीले-हरे पत्‍ते
मघई-महोबा-या-बंगला-या-देसी
गोला-या-कपूरी-या-फिर मदरासी

जो पान नहीं खाय
वहू के समय आय
यह भारतीय उपमहाद्वीपता

थोड़ा सुपारी और देना भाई
तनिक चूना !
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