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08:09, 1 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
किसी-किसी चौड़े पत्ते पर धूप
जैसे उबला नया-नया आलू
छील-काट कर रखा हुआ हो ताजा-ताजा
भाप उड़ाता
लिसड़ा लहसुन की ठण्डी चटनी से
सर्दी में
गरीबी सारे पत्ते झाड़ देती है
ऊपर से मोबाइल
जिसकी बजती हुई घण्टी
खामखा
महत्वपूर्ण होने का गुमान पैदा करे
उबले आलू के दिल में
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