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08:34, 1 जुलाई 2010 <poem>मेरी देह
तलाशती फिरती है तेरी देह
जैसे सूर्य के पीछे धरती
धरती के पीछे चंद्रमा
मेरी देह
व्याकुल तेरी देह के लिए
जैसे सागर की लहरें
पूनम के चांद के लिए
या तरसता है जैसे
मोर बादल को
सीप स्वाति बूंद को
यह देह ही है
जो जगाती है देवत्व भाव मुझमें
तेरी देह के प्रति
दुनियावालो !
मेरे पतन की पहली देहरी है देह
मेरे उत्थान का चरम शिख्रर भी इसे ही जानो ।
</poem>