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14:28, 1 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कर्णसिंह चौहान
|संग्रह=हिमालय नहीं है वितोशा / कर्णसिंह चौहान
}}
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<poem>
समुद्र की गोद में
पालती मारे
सीपों के मोती सा
जंगल बियाबान में
आदिवासियों के गाँव में
बर्गद की छाँव में शान से पसरा
बयुक अदा
महारानी का द्वीप
श्वेत रेत पर
नितंब पसारे
नीले जल में
पैर पखारे
कर्धनी पहने
केश संवारे
अकेली, चुपचाप
आदिवासी लड़की का
सौंदर्य निखरा
बयुक अदा
महारानी का द्वीप
रानी को भाता था
अकेले में रहना
शीतल छांव औ’
फूलों का गहना
इस्तांबुल
साम्राज्य का भाल था
हर पल षड़यंत्र
हमले और रक्तपात
सेना की भीड़ में
रहना मुहाल था
इसीलिए
रानी ने खोजा
यह नीरव कोना
सागर की गोद में
निश्चिंत होना
कहते हैं
राजा से बड़ी थी रानी
साम्राज्य से ऊंची थी
उसकी राजधानी
बयुक अदा
महारानी का द्वीप
<poem>