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14:34, 1 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कर्णसिंह चौहान
|संग्रह=हिमालय नहीं है वितोशा / कर्णसिंह चौहान
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
हमारा प्यार
रेस्तरां की इस सेविका की
आंखों में
मुस्कुरा रहा है
उसे मौका दो
हमारा प्यार
ज्लातना प्यासा की
भट्टी में पकी
सोन मछली की
गंध में
फैल रहा है
इसे उठा लो।
हमारा प्यार
इस्सर नदी की कलकल में
गुनगुना रहा है
इसमें नहा लो।
हमारा प्यार
इस पहाड़ी की धुंध में
खो गया है
अब चलो।
ज्लातना प्यासा (सोन मछली) : रेस्तरां का नाम
इस्सर : सोफिया की बगल में बहती नदी
<poem>