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{{KKRachna
|रचनाकार=कर्णसिंह चौहान
|संग्रह=हिमालय नहीं है वितोशा / कर्णसिंह चौहान
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<poem>

यह शर्माना
लज्जा से लाल हो जाना
डरना
बिछुड़ना
पछताना
पास आना
लहराना
अमरबेलि सी लिपट जाना
उफनते दरिया सी हँस
मौन हो जाना
शरीर की विभूती में खिल जाना
बादलों में छिप कर
चांदनी सा पसर जाना
प्रेम की दुनिया का पहला पाठ है।
<poem>
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