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|रचनाकार=कुमार रवींद्र
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[[Category:गीत]]{{KKCatNavgeet}}<poem>
ऋतु जलसे की
महानगर में
नदी-किनारे जंगल काँपा
पिछली बार कटे थे महुआ
अबकी जामुन की बारी है
पगडंडी पर
राजा जी के आने की सब तैयारी है
आगे बडे मुसाहिब
उनने
जंगल का हर कोना नापा
बेल चढी है जो बरगद पर
आडे आती है वह रथ के
हर झाडी काटी जायेगी
दोनों ओर उगी जो पथ के
आते हैं हर बरस
शाह जी
नदी सिराने महापुजापा
उधर मडैया जो जोगी की
उसमें रानी रात बसेंगी
वनदेवी का सत लेकर वे
अपना कायाकल्प करेंगी
महलों में
बज रहे बधावे
जंगल ने डर कर मुँह ढाँपा।
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