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07:20, 2 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
बेईमान सजे-बजे हैं
तो क्या हम मान लें कि
बेईमानी भी एक सजावट है?
कातिल मजे में हैं
तो क्या हम मान लें कि कत्ल करना मजेदार काम है?
मसला मनुष्य का है
इसलिए हम तो हरगिज नहीं मानेंगे
कि मसले जाने के लिए ही
बना है मनुष्य.
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