Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद |संग्रह=मैं नहीं थ लिखते समय / गो…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=मैं नहीं थ लिखते समय / गोबिन्द प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>

मेरे बचपन की धूप में
ढह गए बुर्ज की
भुरभुराती लखौरी ईंटों से झाँकते
मेरे दादा हैं
परछाइयों में ढूँढते
उँघते हुए बैठे
पिता की शिकस्ता आवाज़
तैर आती है मुझ तक
लौ के उदास सन्नाटे में
फ़ाक़ों से भरे दिन हैं
घर-कुनबे के बुज़ुर्ग और सुबकते हुए बच्चे
बहू-बेटियाँ,माँ और दादी की सूनी आँखों में
लहकते हुए पुरखों के सपने हैं
तुम्हें कुछ पता है
ग़ुरबत में यह भी ग़रीबी से लड़ने की अदा है

<poem>
681
edits