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09:18, 2 जुलाई 2010 <poem>बरसात में नहाई
हरी पत्तियां
सोनल धूप की छुअन जो मिली
दिप-दिप कर खिल उठीं
कुछ और भरा
उनके भीतर हरा
हर छुअन के बाद
फिर-फिर भरा
कुछ और हरा
देखो
इनके दम से
अब हरा भरा है पेड़ पूरा !
</poem>
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