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{{KKRachna
|रचनाकार=दिनेश कुमार शुक्ल
|संग्रह=ललमुनियॉं की दुनिया
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<poem>
बहुत दिनों के बाद, एक दिन चलते-चलते
पड़ी उचटती नज़र अचानक मन के जल पर
उस दर्पण में दिखे पिता --
मुस्कुरा रहे थे,
बहुत दिनों के बाद इस तरफ़ आ पाया था
बहुत दिनों के बाद पिता मुस्कुरा रहे थे
वहाँ अतल में !
बहुत दिनों के बाद मन-मुकुर इतना निर्मल
काँप रहा था झलमल-झलमल !

</poem>