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भीड़ के समुन्दर में / हरीश भादानी
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09:47, 4 जुलाई 2010
टकरा जाऊं तो लगे
भीतर दर्प की चट्टान दरकी है
अतेने
इतेने
बड़े आकार में
अतनी
इतनी
ही हो पहचान मेरी।
</poem>
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