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14:35, 4 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=मैं नहीं था लिखते समय / गोबिन्द प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वह चाहता था
अर्थ के विरोध में एक शब्द खड़ा करना
जब तक वह कोई शब्द तलाश करता था
अँखुए की तरह फूटने लगता
शब्द में से कोई नया अर्थ
यही मुश्किल थी उसके लिए
कि अर्थ से परे शब्द को
विरोध में कैसे खड़ा किया जाए
विरोध की इसी धरती पर खड़ा होकर
उड़ना चाहता हूँ
शब्दों के आकाश में
<poem>