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08:58, 5 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
|संग्रह=
}}
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<poem>
'''गर्व '''
भूचाल में
दादा-दादी
माँ-बाप
और सगों के
स्वाहा होने से
खँडहर बने
पैतृक घर का
बेदखल मालिक बनने का
और
काल-अनुमोदित
संयुक्तावस्था से
लम्पट-उच्छृंखल
एकाकीपन में
आने का
उसे बड़ा गर्व है.