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09:29, 5 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=मैं नहीं था लिखते समय / गोबिन्द प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
भीतर जो अकेला है
उस मन का क्या करूँ
सन्नाटे-सा
बरजता दिन-रात
अँधड़ उठाता
जो बन है, उस बन का क्या करूँ
<poem>