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09:46, 5 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=मैं नहीं था लिखते समय / गोबिन्द प्रसाद
}}
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<poem>
हँसने के लिए
रोता रहा तमाम उम्र
और जब हसने की घड़ी आई
तब हँसना तो दूर
ढंग से मैं रोना भी भूल चुका था
<poem>