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18:21, 2 मई 2007 रचनाकार: भावना कुँअर
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रुलाया था बहुत तुमने, जो मेरे दिल को तोड़ा था
जमाने भर की नफरत को, मेरे हिस्से में छोड़ा था ।
बनाया महल सपनों का, सजाया मन के आँगन को
लगाई थी जो चिंगारी, जलाके सबको छोड़ा था ।
मेरे होने का दम भरके, निभाई गैर से उल्फत
बचाकर मुझसे ही नजरें, भरोसा मेरा तोड़ा था ।
सजाया था बहारों से, मेरे दुश्मन के दामन को
निभाने का किया वादा, मगर वादों को तोड़ा था ।
बिखरकर सूखती डाली, नहीं अब कोई भी माली
था बंधन जो ये सांसों का, उसे तूने ही तोड़ा था।
Categories: कविताएँ | भावना कुँअर